तुम्हें याद है आज का दिन
जब पहली बार मेरे कानों में
तुम्हारी मधुर आवाज़ गूँजी थी
उस दिन रात- भर सोई नहीं थी मैं
जब पहली बार मेरे कानों में
तुम्हारी मधुर आवाज़ गूँजी थी
उस दिन रात- भर सोई नहीं थी मैं
लगा
जैसे इक नया दोस्त मिल गया हो
जो हर -क़दम पर मेरे साथ चल पड़ेगा
पर ये सब कुछ कल्पना थी, भ्रम था
या फिर कोई सपना
मैं ये आज तक समझ ही न सकी ....
जो हर -क़दम पर मेरे साथ चल पड़ेगा
पर ये सब कुछ कल्पना थी, भ्रम था
या फिर कोई सपना
मैं ये आज तक समझ ही न सकी ....
-सालिहा मंसूरी
29 .06 .15, 11:52
1 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Post a Comment