इक वादा हर रोज
खुद से करती हूँ
और उस वादे को
हर रोज तोड़ भी देती हूँ
फिर अगले ही पल
खुद से वही वादा करती हूँ
और अगले ही पल
फिर उसे तोड़ देती हूँ
और ये वादों को करने
और तोड़ने का सिलसिला
हर रोज यूँ ही चलता रहता
फिर चुपके से खुद अपनी ही
हथेलियों से अपने आंसुओं को
पोंछकर खुद को ये कहकर
समझा लेती कि कभी न कभी
इक न इक दिन इन वादों
में से वो वादा भी जरूर होगा
जो अटल होगा ! अमर होगा !
और शाश्वत होगा !
सालिहा मंसूरी
1 comments:
Hello mate great blog postt
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