Monday 18 June 2018

तक़दीर


अब इन स्याह रातों से 
मुँह मोड़ना कैसा
ये तो तकदीर हैं
मेरी जिंदगी की
जो चलेंगी उम्र भर 
यूं ही साथ मेरे
कभी तड़पेंगी कभी तरसेंगी 
सुनहरी धूप की खातिर
पर जानती हूँ मैं,  
इन स्याह रातों का
कोई सवेरा नहीं 

- सालिहा मंसूरी
11.02.15

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