अब इन स्याह रातों से
मुँह मोड़ना कैसा
ये तो तकदीर हैं
मेरी जिंदगी की
जो चलेंगी उम्र भर
यूं ही साथ मेरे
कभी तड़पेंगी कभी तरसेंगी
सुनहरी धूप की खातिर
पर जानती हूँ मैं,
इन स्याह रातों का
कोई सवेरा नहीं
- सालिहा मंसूरी
11.02.15
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