तुम्हें भूलना चाहा बहुत
फिर भी तुम याद रहे
दिल को समझाया बहुत
फिर भी तुम याद रहे
ये सांसों की डोर
फिर भी तुम याद रहे
दिल को समझाया बहुत
फिर भी तुम याद रहे
ये सांसों की डोर
कब और कैसे
तुमसे जुड़ गई
मैं खुद नहीं जानती
बस ! इतना जानती हूँ
मेरी ज़िन्दगी तुमसे है
मेरी बंदगी तुमसे है ...
सालिहा मंसूरी –
05.07.15 07.45 pm
1 comments:
वाह क्या बात है !
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