Thursday, 27 October 2016

आज भी आँखों के सामने

आज भी आँखों के सामने कुछ नक्श से उभरते हैं, पता नहीं उन नक्शों को रंगों में भरा हुआ कब देख पाउंगी.

सालिहा मंसूरी


28.08.14

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