कुछ ही दिनों में
कितना सब कुछ बदल गया
तुम बदल गए
मैं बदल गई
तेरे मेरे रिश्ते की
परिभाषा ही बदल गई
कितना चाहा था मैंने तुमको
क्या तुम्हें मालूम है
दिल से अपना बनाना
चाहा था मैंने तुमको
क्या तुम्हें मालूम है
पर तुम तो किसी
और के हो लिए
इक बार भी नहीं सोचा
कि मुझ पर क्या बीतेगी
तुम क्यों बदल गए
कैसे बदल गए
जब तुमको पाया तब
ऐसे तो नहीं थे तुम
अच्छे ,भले इंसान थे
मानवता को समझने वाले
रिश्तों को समझने वाले
सबके दर्द को समझने वाले
फिर इतना परिवर्तन कैसे ??
- सालिहा मंसूरी
17.5.17
1 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 17 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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