कब मिलोगे तुम मुझे
ये आश लगाये अब
थक चुकी हूँ मैं
वक़्त की लहरों के समंदर पे मैं
तक रही हूँ तुम्हारा रास्ता
मन की गहरे से
तन की परछाई से
पूछ रही हूँ तुम्हारा रास्ता
कब मिलोगे तुम मुझे
आखिर कब ..................
- सालिहा मंसूरी
ये आश लगाये अब
थक चुकी हूँ मैं
वक़्त की लहरों के समंदर पे मैं
तक रही हूँ तुम्हारा रास्ता
मन की गहरे से
तन की परछाई से
पूछ रही हूँ तुम्हारा रास्ता
कब मिलोगे तुम मुझे
आखिर कब ..................
- सालिहा मंसूरी
0 comments:
Post a Comment