Friday 17 July 2015

पूछ रही हूँ तुम्हारा रास्ता

कब मिलोगे तुम मुझे 
ये आश लगाये अब 
थक चुकी हूँ मैं 
वक़्त की लहरों के समंदर पे मैं 
तक रही हूँ तुम्हारा रास्ता 
मन की गहरे से 
तन की परछाई से 
पूछ रही हूँ तुम्हारा रास्ता 
कब मिलोगे तुम मुझे 
आखिर कब ..................

- सालिहा मंसूरी

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