जिन राहों में तुम मुझे
छोड़ कर गए थे
आज भी मैं उन्हीं ,
राहों में खड़ी
तुम्हारा इंतज़ार
कर रही हूँ
बिलकुल अकेली
और तन्हा
सिर्फ इस उम्मीद से
कि इक न इक दिन
तुम जरुर लौट
कर आओगे
और मुझे वहीं
खड़ा हुआ पाओगे
जहाँ तुम मुझे छोड़कर
गए थे बिलकुल अकेली
और तन्हा
...................
सालिहा मंसूरी
1 comments:
इंतज़ार का मजा भी शायद इसी में है ... प्रेम हो तो इंतज़ार लम्बा नहीं लगता ...
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