इक चुप -सी ख़ामोशी
चुभती है दिन रात
चेहरे पे इक गहरी उदासी
छायी रहती है दिन -रात
अब चले भी आओ
मेरे दोस्त !
ये तरसी निगाहें
तुम्हारा रस्ता -
तकती हैं दिन -रात ..........
- सालिहा मंसूरी
चुभती है दिन रात
चेहरे पे इक गहरी उदासी
छायी रहती है दिन -रात
अब चले भी आओ
मेरे दोस्त !
ये तरसी निगाहें
तुम्हारा रस्ता -
तकती हैं दिन -रात ..........
- सालिहा मंसूरी
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