तुम कभी नहीं मिलोगे मुझे
अब ये जान चुकी हूँ मैं
अपने दिल से हर इक ख्वाब
मिटाना होगा मुझे
अब ये मान चुकी हूँ मैं
मेरी उम्मीदों से भरा हौसला भी
अब टूट चूका है
मेरा अटल अमर विश्वास भी
ज़र्रा – ज़र्रा होकर बिखर चुका है
ज़िन्दगी की हर जंग
हार चुकी हूँ मैं
हाँ ! अब हार चुकी हूँ मैं ...
सालिहा मंसूरी
28.01.16
04.17 pm
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