"ऐ मेरे दोस्त !
ये किस जगह ले आये हो मुझे
जहाँ से ना ना तो ज़मी दिखती है
ना नीले आसमान में उड़ते पंछी
दिखती है तो सिर्फ -
वीरानगी ! तनहाइयाँ ! और खामोशियाँ !
जो रात के अँधेरे में
तकिये की ओट में
अपने आंसू पोंछ रहीं हैं ...............
सालिहा मंसूरी -
22 .6.15 -5 :58am
ये किस जगह ले आये हो मुझे
जहाँ से ना ना तो ज़मी दिखती है
ना नीले आसमान में उड़ते पंछी
दिखती है तो सिर्फ -
वीरानगी ! तनहाइयाँ ! और खामोशियाँ !
जो रात के अँधेरे में
तकिये की ओट में
अपने आंसू पोंछ रहीं हैं ...............
सालिहा मंसूरी -
22 .6.15 -5 :58am
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