राख हो गए वो सपने
जो देखे थे कभी मैंने
तुम्हारी पलकों के तले
चुप है वो राख आज भी
लेकिन उस चुप सी राख में
शोलों की ज्वाला
सुलग रही है आज भी
इक चिंगारी लगा कर देखो
तुम्हें उस चुप सी राख में
शोलों की ज्वाला भड़कती
हुई नज़र आएगी -----
सालिहा मंसूरी
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