इन तन्हाईयों की राहों
में
और कब तक चलना पड़ेगा
तुम्हारे बिना
इन ख़ामोशियों के
अंधेरों में
और कब तक रहना पड़ेगा
तुम्हारे बिना
यही सवाल मैं हर रोज़
दूर आसमान में चमकते
उन सितारों से करती हूँ
और वो सितारे स्थिर
होकर
इकटक मुझे देखते रहते
हैं
जैसे वो भी मुझसे कोई
सवाल पूँछ रहे हों
.....
सालिहा मंसूरी
10.09.15 9:55 pm
1 comments:
ये सवालों का सिलसिला ही तो जीवन है ... बहुत खूब ...
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