किनारा मिले न मिले
फिर भी मैं चलती जाऊँगी
मंजिल मिले न मिले
फिर भी मैं बढ़ती जाऊँगी
राही रुके न रुके
फिर भी मैं संभलती जाऊँगी ......
सालिहा मंसूरी
04.01.16 07:45 am
फिर भी मैं चलती जाऊँगी
मंजिल मिले न मिले
फिर भी मैं बढ़ती जाऊँगी
राही रुके न रुके
फिर भी मैं संभलती जाऊँगी ......
सालिहा मंसूरी
04.01.16 07:45 am
1 comments:
दिनांक 09/02/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
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