बहुत उदास हैं ये दिन
बड़ी सहमी हैं ये रातें
हर साँझ है जैसे
सूना आँगन
हर आँख है जैसे
सावन का बादल
- सालिहा मंसूरी
24 . 2 .16 , 02 : 41 pm
बहुत उदास हैं ये दिन
बड़ी सहमी हैं ये रातें
हर साँझ है जैसे
सूना आँगन
हर आँख है जैसे
सावन का बादल
- सालिहा मंसूरी
24 . 2 .16 , 02 : 41 pm
कितनी कोशिशें की थी मैंने
फिर भी मैं हार जाती हूँ
अँधेरों से भी तो कितना लड़ी
फिर भी मैं टूट जाती हूँ
कभी तो आये वो दिन वो रात
जब मैं कभी न हारूँ
जब मैं कभी न टूटूँ
- सालिहा मंसूरी
24 . 2. 16 , 02 : 50 AM
सिये हैं लब मैंने इन्हीं
ज़माने वालों के तानों से
फिर भी है इंतजार किसी का
इन्हीं ज़माने वालों से
- सालिहा मंसूरी
23 . 2. 16 , 02 :14 pm
हर सफ़र तय करना है तुम्हें
चाहे कितनी मुश्किलें आयें
हर - दर्द को सहना है तुम्हें
चाहे कितने तूफान आयें
- सालिहा मंसूरी
23 .2.16 , 08 : 00 AM
कई शामें तेरी बातों की
तन्हाईयाँ लेकर आती हैं
कई रातें तेरी यादों की
परछाईयाँ लेकर आती हैं
कई सुबहें उम्मीदों की
किरणे लेकर आती हैं
- सालिहा मंसूरी
22 .2.16 , 03 : 50 pm
आज फिर उसी जगह पर बैठी हूँ
जहाँ बरसों पहले कभी मैंने
तुम्हारा इन्तज़ार किया था
लेकिन आज !
आज किसी का इन्तज़ार नहीं
आज तो बस जैसे
ज़िन्दगी से थककर बैठ गई हूँ
- सालिहा मंसूरी
22 .2.16 , ( 02 : 05 ) pm
कुछ ही दिनों में
कितना सब कुछ बदल गया
तुम बदल गए
मैं बदल गई
तेरे मेरे रिश्ते की
परिभाषा ही बदल गई
कितना चाहा था मैंने तुमको
क्या तुम्हें मालूम है
दिल से अपना बनाना
चाहा था मैंने तुमको
क्या तुम्हें मालूम है
पर तुम तो किसी
और के हो लिए
इक बार भी नहीं सोचा
कि मुझ पर क्या बीतेगी
तुम क्यों बदल गए
कैसे बदल गए
जब तुमको पाया तब
ऐसे तो नहीं थे तुम
अच्छे ,भले इंसान थे
मानवता को समझने वाले
रिश्तों को समझने वाले
सबके दर्द को समझने वाले
फिर इतना परिवर्तन कैसे ??
- सालिहा मंसूरी
17.5.17
ख़्वाबों में देखा है तुम्हें
सितारों में देखा है तुम्हें
कभी नज़रों से देख लूँ
तो सारे दर्द मिट जाएं
- सालिहा मंसूरी
21 .2 . 16 , 09 : 45 pm
छुपा लो हर गम , हर दर्द , एहसास
अपनी इस भीनी सी मुस्कुराहट में
और सो जाओ मीठी नींद में खोकर
उम्मीदों और हौसलों के समन्दर में
- सालिहा मंसूरी
20 . 2. 16
क्षण - भंगुर है ये जीवन
फिर क्यों माया का है बंधन
पल दो पल के रिश्ते नाते फिर
क्यों दर्द भरा है दिल के अंदर
- सालिहा मंसूरी
20 - 2 - 16 , 07 : 20 ( pm )
ले डूबी है साँझ
सूरज की लाली को
देखो फिर भी निकला है
चाँद अँधेरा मिटाने को
- सालिहा मंसूरी
20.2.16, 05 : 20 pm
ख़ुशियाँ खो गईं
मंज़िल खो गई
रस्ता खो गया
अँधेरा भी सो गया
- सालिहा मंसूरी ©
20.2.16 , 05 : 20 pm
सब कहते हैं
मेरी मंजिल है कहाँ
मैं कहती हूँ
तुम जहाँ मिल जाओ
मेरी मंजिल है वहाँ
- सालिहा मंसूरी
20 .2.16 , 02 : 55 ( pm )